बागेश्वर धाम पूज्य धीरेंद्र शास्त्री जिनशरणं तीर्थ पर पधारे, यहां जिनशरणं तीर्थ को मे पधारे श्रद्धालुओं को धीरेन्द्र शास्त्री जी की वाणी का सोभाग्य मिला । तीर्थधाम जिनशरणं महाराष्ट्र की पावन धरती पर स्थित है। यहां आने वाले लोग अपने आराध्य आचार्य चरण श्री गुरुदेव के चरणों को प्रणाम करते हुए अपने आचार्य चरण पूज्य श्री गुरुदेव के चरणों को प्रणाम करते हुए अपने आराध्य आचार्य चरण पूज्य श्री गुरुदेव के चरणों को प्रणाम करते हुए अनंत बलवंत परम संत श्री हनुमान जी महाराज के चरणों को प्रणाम करते हुए आने का सोभाग्य प्राप्त हुआ और जिनशरणं तीर्थ पधार कर धीरेन्द्र शास्त्री जी ने अनेक विषयों पर प्रकाश अपनी दिव्य वाणी से डाला
भगवान जिनेश्वर के दरबार में समागम
भगवान जिनेश्वर के दरबार में आने का सौभाग्य मिलता है। वहां के महामहोत्सव में हजारों लोग एकत्रित होते हैं और भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दरबार में आने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है और उसे मोक्ष मिलता है।
जैन धर्म की महानता
जैन धर्म की महानता को सभी जानते हैं। इस परंपरा की महानता के बारे में बताने के लिए, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव जी महाराज के पावन चरित्र का गान करते हैं। ऋषभ देव जी महाराज ने अपनी इंद्रियों को जीत लिया, अपने जीवन की शुद्धि की, और तन और मन की पवित्रता को बनाए रखा। जैन महात्माओं ने अपना पूरा जीवन धाम पर प्रतीत रखा है और जैन संघ की परंपरा को आगे बढ़ाया है। जिन ऋषभ देव महाराज का वर्णन तो हमारे ग्रंथों मे भी है इस निर्वाहिनी में जैन परंपरा के अनुसार जीने वाले लोग अपने जीवन की प्रत्येक कामनाओं का त्याग करते हैं और प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव जी महाराज की कृपा को प्राप्त करते हैं।
जैन और सनातन परंपरा में कोई अंतर नहीं
सनातन और जैन परंपरा में सम्मिलन होता है। जैसे कि पूज्य धीरेंद्र शास्त्री द्वारा बताया गया है कि सनातन और जैन परंपरा में अंतर नहीं है, दोनों में अद्वैतता है और ये दोनों एक दूसरे का पूरक हैं। यह जिनशरणं तीर्थ आज उसका एक सम्मेलन है ऐसे सम्मेलन मे जैन और सनातन परंपरा का मेल होता है। यहां जैन महात्माओं और सनातन महात्माओं के ऊपर हंसते हैं, उंगली उठाते हैं, और उन्हें गर्व के साथ प्रणाम करते हैं। इस मेल के बावजूद, जैन और सनातन परंपरा एक-दूसरे को पूरक हैं और दोनों की एकता है। ऐसा सम्मेल को लेते हुए यह पंचकल्याणक हुआ जैन और सनातन परंपरा में कोई अंतर नहीं है। जैन परंपरा और सनातन परंपरा दोनों में एकता है और ये एक दूसरे के पूरक हैं। जैसे सूर्य और सूर्य की रोशनी में अंतर नहीं होता है, वैसे ही सनातन और जैन परंपरा में भी अंतर नहीं है। जैन परंपरा और सनातन परंपरा दोनों में एकता है और जैन महात्माओं और सनातन महात्माओं के ऊपर हंसते हैं, उंगली उठाते हैं और उन्हें गर्व के साथ प्रणाम करते हैं।
तीर्थधाम का महत्व
तीर्थधाम का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और इसे यात्रा करने से व्यक्ति को आनंद और शांति मिलती है। यहां पर्यटकों को आध्यात्मिक और मानसिक सुख भी मिलता है।
भगवान जिनेश्वर की कृपा
भगवान जिनेश्वर की कृपा से व्यक्ति को आत्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है। वहां के महामहोत्सव में आने से व्यक्ति को शांति और सुख मिलता है और उसके जीवन में समृद्धि आती है।
जैन परंपरा और सनातन परंपरा
जैन परंपरा और सनातन परंपरा दोनों ही भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। दोनों परंपराओं में आत्मा के शुद्ध होने का मार्ग बताया गया है और उन्हें अपने जीवन में लाने के लिए उपाय बताए गए हैं।
महात्मा मुनि और जैन धर्म
महात्मा मुनि जैन धर्म के प्रवर्तक हैं। उन्होंने जैन धर्म को और जैन परंपरा को महत्वपूर्ण बनाया है। उनके प्रवचनों और उपदेशों की मदद से लोग आत्मिक और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं।
गुरुदेव की कृपा
गुरुदेव की कृपा से हमें आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है। उनके चरणों में आने से हमें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और हमें सही मार्ग दिखाया जाता है।
भारतीय संस्कृति का महत्व
भारतीय संस्कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें अनेक धर्म, जैन परंपरा और सनातन परंपरा को सम्मिलित किया गया है और यह विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति मानी जाती है।
समर्पण के महत्व
समर्पण करने से हमें आत्मा शुद्ध होती है और हम आपातकाल में भगवान की सहायता प्राप्त कर सकते हैं। समर्पण के माध्यम से हम अपनी छोटी-मोटी चिंताओं को भगवान के सामने रख सकते हैं।
तीर्थधाम के महात्वपूर्ण स्थान
तीर्थधाम में कई महात्वपूर्ण स्थान हैं जैसे श्रीशेत्र, आयोध्या, मथुरा, काशी, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, पुष्कर, नशिक, उज्जैन, द्वारका, गया, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि। इन स्थानों पर जाने से हमें आत्मा की प्रगति होती है और हम अपनी श्रद्धा बढ़ा सकते हैं। जिसमे एक जिनशरणं तीर्थ भी तीर्थधाम बन चुका है आप सब इस तीर्थ धाम पर पधारे यह जिनशरणं तुम्हारे बाप का घर है तो बार-बार पधारे।
संतों की महिमा
संतों की महिमा अत्यधिक है। वे हमें सही मार्ग की ओर ले जाते हैं और हमें आत्मिक और मानसिक प्रगति कराते हैं। वे हमें भगवान के साथ जोड़ते हैं और हमें अपनी आत्मा को प्रकट करने के लिए प्रेरित करते हैं।
बागेश्वर धाम: धीरेंद्र शास्त्री जी का संदेश
बागेश्वर धाम के महाकुंभ धिरेंद्र शास्त्री का संदेश है कि हमें सनातन के साथ जुड़ा रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि सनातन और जैन परंपरा एकदृष्टि से एक हैं और हमें इसे समझना चाहिए।